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हरेली तिहार : छत्तीसगढ़ी संस्कृति का पर्व, प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक राजू कुरैशी

रियाजुद्दीन (राजू) कुरैशी ने ज़िला एवं प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं।

हरेली तिहार : छत्तीसगढ़ी संस्कृति का पर्व, प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक राजू कुरैशी

जिला मोहला मानपुर अम्बागढ़ चौकी भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा जिला जिलाध्यक्ष रियाजुद्दीन (राजू) कुरैशी ने एक प्रेस वार्ता पर कहा छत्तीसगढ़ की धरा पर लोक परंपराओं और प्रकृति से जुड़ा त्यौहार हरेली विशेष महत्व रखता है। यह पर्व न केवल कृषि प्रधान समाज की आस्था का प्रतीक है, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली, हरियाली और पर्यावरण प्रेम की जीवंत मिसाल भी है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति में रचा-बसा हरेली तिहार हर साल श्रावण मास की अमावस्या तिथि को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर राजू कुरैशी ने समस्त जिला एवं प्रदेशवासियों को हरेली पर्व की बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि हरेली छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में गहराई से जुड़ा हुआ त्योहार है। यह सिर्फएक परंपरा नहीं, बल्कि हमारी धरती माता, कृषि और पर्यावरण के प्रति सम्मान और आभार का

प्रतीक है। हरेली शब्द स्वयं ‘हरियाली’ से जुड़ा है। यह पर्व किसानों के लिए नये कृषि सत्र की शुरुआत का सूचक है। खेतों में हरियाली लानेकी कामना के साथ किसान इस दिन

खेती-किसानी में उपयोग होने वाले औजारों जैसे हल, गैती, फावड़ा, कुदाल, हसिया आदि की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। गांवों में लाठी प्रतियोगिता, नारियल फोड़ प्रतियोगिता, नरवा-गरवा-घुरवा बाड़ी की चर्चा, छत्तीसगढ़ी नृत्य और गीत जैसे कार्यक्रम इस दिन विशेष आकर्षण होते हैं। राजू कुरैशी ने कहा कि हरेली तिहार हमें हमारी जड़ों की याद दिलाता है। इस दिन हम कृषि यंत्रों की सफाई कर उन्हें पूजते हैं। यह भावना दर्शाती है कि किसान अपने औजारों को सिर्फ उपकरण नहीं, बल्कि भाग्य का साथी मानता है। धरती माता की पूजा कर किसान उनके आशीर्वाद से भरपूर फसल की कामना करता है। इससे एक ओर जहां पारंपरिक कृषि सम्मानित होती है, वहीं दूसरी ओर पीढ़ियों को प्रकृति और पर्यावरण से जोड़े

रखने का एक सकारात्मक संदेश भी जाता है। छत्तीसगढ़ के हर गांव-गली में हरेली की छटा देखते ही बनती है। घरों को साफकर गोबर से लिपा जाता है, आंगन में नीम की टहनियां लगाई जाती हैं, और बच्चे लकड़ी के बैल बनाकर पारंपरिक खेलों में भाग लेते हैं। राजू कुरैशी ने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत में हरेली केवल पर्व नहीं बल्कि लोक जीवन की जीवंत अभिव्यक्ति है। आने वाली पीढ़ियों को इस विरासत से परिचित कराना हमारी जिम्मेदारी है। आज जब आधुनिकता के कारण परंपराएं धुंधलाने लगी हैं, तब हरेली जैसे त्योहार हमें अपनी पहचान की ओर लौटने का अवसर देते हैं। राजू कुरैशी ने खासकर युवाओं और विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इन पारंपरिक त्योहारों को जानें, समझें और अपने जीवन में शामिल करें। उन्होंने कहा-हरेली केवल किसानों का त्यौहार नहीं, यह हम सभी का पर्व है। हमें चाहिए कि हम इसका संरक्षण करें और इस परंपरा को आगे बढ़ाएं।

योगेन्द्र सिंगने की रिपोर्ट

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