
छत्तीसगढ़ की माटी के गौरव, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन – साहित्यिक जगत में शोक की लहर
मोहला।
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर, हास्य और व्यंग्य साहित्य को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने वाले पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे जी के निधन का समाचार अत्यंत दुःखद और स्तब्ध कर देने वाला है। उनके निधन से छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश ने एक प्रखर कवि, संवेदनशील लेखक और संस्कृति प्रहरी को खो दिया है।
डॉ. दुबे ने हास्य की मधुर विधा को गंभीर सामाजिक संदेशों से जोड़ा और अपने विशिष्ट अंदाज़ से लाखों श्रोताओं और पाठकों का दिल जीता। वे हास्य कविता को मंचीय लोकप्रियता के साथ-साथ साहित्यिक गरिमा भी दिलाने में सफल रहे।
✍️ संक्षिप्त जीवनी
डॉ. सुरेंद्र दुबे जी का जन्म 1 जनवरी 1953 को भिलाई (छत्तीसगढ़) में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के साथ-साथ आयुर्वेद चिकित्सा की शिक्षा भी प्राप्त की और वैद्याचार्य के रूप में कार्य करते रहे। वे मूलतः पेशे से डॉक्टर थे लेकिन हास्य-व्यंग्य उनका जुनून था।

लगभग चार दशक तक उन्होंने देश-विदेश के मंचों पर कवि सम्मेलनों में भाग लिया। उनके हास्य-व्यंग्य में सामाजिक व्यंग्य, राजनीति पर कटाक्ष और जन-भावनाओं का संयोजन देखने को मिलता था।
उनकी प्रसिद्ध कृतियों में “हँसी के फूल”, “मौसम मुस्कुराने दो”, “हास्य का हार्ट अटैक” जैसी पुस्तकें शामिल हैं। उनकी लेखनी आम जनमानस की भाषा में थी, जो सीधे दिल को छूती थी।
🏅 सम्मान और उपलब्धियाँ
- वर्ष 2010 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया।
- अनेक साहित्य अकादमियों, सांस्कृतिक संस्थाओं और मंचों से उन्हें सम्मानित किया गया।
- वे दूरदर्शन, आकाशवाणी और प्रमुख टीवी चैनलों पर नियमित रूप से दिखाई देते रहे।
🕯️ श्रद्धांजलि
जिला भाजपा मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी परिवार की ओर से हम इस अपूरणीय क्षति पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं।
डॉ. दुबे ने छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को गौरव दिलाया और अपनी लेखनी से हास्य को समाज परिवर्तन का सशक्त माध्यम बनाया।
ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करें तथा शोकाकुल परिवारजनों और करोड़ों प्रशंसकों को यह दुःख सहन करने की शक्ति दें।
ॐ शांति।